सकट चौथ पर पढ़ें व्रत कथा, गणेशजी आपकी संतान को देंगे दीर्घायु होने का आशीर्वाद: Sakat Chauth Vrat Katha

Sakat Chauth Vrat Katha
Sakat Chauth Vrat Katha

Sakat Chauth Vrat Katha: साल में 12 संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती हैं, जिसमें साल भर में कुछ विशेष बड़ी चौथ मनाई जाती हैं, जिसमें माघ महीने में पड़ने वाली सकट चौथ भी शामिल है। सकट चौथ व्रत को लंबोदर संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है।

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मान्यता है कि इस व्रत को करने से पूरे वर्ष के संकष्टी चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त होता है। इस साल सकट चौथ 29 जनवरी 2024 को है। बड़ी चौथ यानी सकट चौथ के दिन सुख, उन्नति और संतान की सुरक्षा की कामना से भगवान गणेश की पूजा की जाती है। सकट चौथ व्रत के दिन आप अपने प्रियजनों को ये भक्तिपूर्ण संदेश भेज सकते हैं और उन्हें इस त्योहार की बधाई दे सकते हैं।

गणपति जी का सर पर हाथ हो
हमेशा उनका साथ हो
खुशियों का हो बसेरा
करे शुरुआत बप्पा के गुणगान से
मंगल फिर हर काम हो

हर शुभ कार्य में पहले पूजा तेरी
तुम्हारे बिना काम ना सरे अरज सुन मेरी
रिध सिध को लेकर करो भवन में फेरी
नैया पार लगा दो बप्पा मेरी

भगवान गणेश जी की कृपा आप पर बनी रहे
हर दम हर काम में मिले सफलता
कभी ना आये जीवन में कोई गम

संकट हरो सबके गणेश
बस यही है कामना
जब-जब आए संकट में भक्त
हाथ देकर थामना
सकट चौथ 2024

गणेश जी का रूप निराला है
चेहरा भी कितना भोला भाला है
जिसे भी आती है कोई मुसीबत
उसे इन्हीं ने तो संभाला है की शुभकामनाएं

सकट चौथ व्रत कथा 1 Sakat Chauth Vrat Katha

एक बार गणेशजी बाल रूप में चुटकी भर चावल और एक चम्मच दूध लेकर पृथ्वी लोक के भ्रमण पर निकले। वे सबसे यह कहते घूम रहे थे, कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे। लेकिन सबने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तभी एक गरीब बुढ़िया उनकी खीर बनाने के लिए तैयार हो गई। इस पर गणेशजी ने घर का सबसे बड़ा बर्तन चूल्हे पर चढ़ाने को कहा। बुढ़िया ने बाल लीला समझते हुए घर का सबसे बड़ा भगौना उस पर चढ़ा दिया।
गणेशजी के दिए चावल और दूध भगौने में डालते ही भगौना भर गया। इस बीच गणेशजी वहां से चले गए और बोले अम्मा जब खीर बन जाए तो बुला लेना। पीछे से बुढ़िया के बेटे की बहू ने एक कटोरी खीर चुराकर खा ली और एक कटोरी खीर छिपाकर अपने पास रख ली। अब जब खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया माई ने आवाज लगाई-आजा रे गणेशा खीर खा ले।
तभी गणेश जी वहां पहुंच गए और बोले कि मैंने तो खीर पहले ही खा ली। तब बुढ़िया ने पूछा कि कब खाई तो वे बोले कि जब तेरी बहू ने खाई तभी मेरा पेट भर गया। बुढ़िया ने इस पर माफी मांगी। इसके बाद जब बुढ़िया ने बाकी बची खीर का क्‍या करें, इस बारे में पूछा तो गणेश जी ने उसे नगर में बांटने को कहा और जो बचें उसे अपने घर की जमीन गड्ढा करके दबा दें।

अगले दिन जब बुढ़िया उठी तो उसे अपनी झोपड़ी महल में बदली हुई और खीर के बर्तन सोने- जवाहरातों से भरे मिले। गणेश जी की कृपा से बुढ़िया का घर धन दौलत से भर गया। हे गणेशजी भगवान जैसे बुढ़िया को सुखी किया वैसे सबको खुश रखें।

सकट चौथ व्रत कथा 2

किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया तो आंवा नहीं पका। हारकर वह राजा के पास जाकर प्रार्थना करने लगा कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने पंडित को बुलाकर कारण पूछा तो राज पंडित ने कहा कि हर बार आंवां लगाते समय बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा। राजा का आदेश हो गया। बलि आरंभ हुई। जिस परिवार की बारी होती वह परिवार अपने बच्चों में से एक बच्चा बलि के लिए भेज देता।

इसी तरह कुछ दिनों बाद सकट के दिन एक बुढ़िया के लड़के की बारी आई। बुढ़िया के लिए वही जीवन का सहारा था। लेकिन राजआज्ञा के आगे किसी की नहीं चलती। दुःखी बुढ़िया सोच रही थी कि मेरा तो एक ही बेटा है, वह भी सकट के दिन मुझसे जुदा हो जाएगा। बुढ़िया ने लड़के को सकट की सुपारी और दूब का बीड़ा देकर कहा, ‘भगवान् का नाम लेकर आंवां में बैठ जाना। सकट माता रक्षा करेंगी।’

बालक को आंवा में बैठा दिया गया और बुढ़िया सकट माता के सामने बैठकर पूजा करने लगी। पहले तो आंवा पकने में कई दिन लग जाते थे, पर इस बार सकट माता की कृपा से एक ही रात में आंवां पक गया था। सवेरे कुम्हार ने देखा तो हैरान रह गया। आंवां पक गया था। बुढ़िया का बेटा भी सुरक्षित था और अन्य बालक भी जीवित हो गए थे। नगरवासियों ने सकट की महिमा स्वीकार की तथा लड़के को भी धन्य माना। तब से आज तक सकट की विधि विधान से पूजा की जाती है।

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