पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि केवल जमानत की शर्त का उल्लंघन करने पर किसी आरोपी की जमानत रद्द नहीं की जा सकती। आदेश जारी करते हुए यह स्पष्ट करना जरूरी है कि आखिर क्यों जमानत रद्द करना अनिवार्य है।
हाईकोर्ट ने यह फैसला फरीदाबाद निवासी रजिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। रजिया के खिलाफ एनडीपीएस के दो मामले दर्ज हैं। पहले मामले में उसे जमानत मिली थी, लेकिन शर्त रखी गई थी कि यदि उसके खिलाफ कोई और एनडीपीएस का मामला दर्ज होता है तो जमानत रद्द हो जाएगी।
दूसरे मामले में रजिया की गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने जमानत रद्द करने के लिए ट्रायल कोर्ट में अर्जी दाखिल की। ट्रायल कोर्ट ने जमानत देते समय लगाई गई शर्त का उल्लंघन को आधार बनाते हुए रजिया की जमानत रद्द कर दी।
रजिया ने हाईकोर्ट में जमानत रद्द करने के आदेश को चुनौती दी। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद कहा कि ऑटोमेटिक जमानत रद्द करने का आदेश जारी करने का अदालत को अधिकार नहीं है। जमानत रद्द करने का जांच एजेंसी का आवेदन मिलने पर विभिन्न तथ्यों व स्थिति पर विचार करना जरूरी है। जमानत रद्द करने का कारण आदेश में स्पष्ट किया जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने रजिया की जमानत रद्द करने के आदेश को खारिज कर दिया। हाईकोर्ट ने कहा कि रजिया के खिलाफ दर्ज दूसरे मामले में अभी कोई आरोप पत्र दाखिल नहीं हुआ है। ऐसे में केवल जमानत की शर्त का उल्लंघन करने के आधार पर जमानत रद्द करना उचित नहीं है।
हाईकोर्ट के इस फैसले से जमानत पर विचार करने की प्रक्रिया में बदलाव आने की उम्मीद है। अब अदालतें जमानत रद्द करने के लिए केवल जमानत की शर्त का उल्लंघन को आधार नहीं बना पाएंगी। उन्हें मामले की गंभीरता, आरोपी की हिरासत में रहने की अवधि, उसके परिवार की आर्थिक स्थिति, आदि कारकों पर भी विचार करना होगा।
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