पुणे बीपीओ गैंगरेप-हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, फांसी की सजा उम्रकैद में बदली

पुणे बीपीओ गैंगरेप-हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, फांसी की सजा उम्रकैद में बदली

साल 2007 के पुणे बीपीओ सामूहिक दुष्कर्म और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को दी गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने दया याचिका में देरी का हवाला देते हुए फांसी की सजा को रद्द कर इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया था। अब शीर्ष अदालत ने भी हाईकोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा है।


क्या है मामला?

उत्तर प्रदेश की रहने वाली पीड़िता पुणे के हिंजवड़ी में स्थित एक बीपीओ में काम करती थी। घटना 1 नवंबर 2007 की है, जब पीड़िता कंपनी की कैब से नाइट शिफ्ट के लिए जा रही थी। कैब ड्राइवर पुरुषोत्तम बोराटे और उसका साथी प्रदीप कोकाटे ने गाड़ी को सुनसान जगह ले जाकर पीड़िता के साथ दुष्कर्म किया। बाद में उसकी गला दबाकर हत्या कर दी और पहचान मिटाने के लिए चेहरा पत्थर से कुचल दिया।

कुछ दिनों के भीतर पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया। पुणे सेशन कोर्ट ने 2012 में दोषियों को मौत की सजा सुनाई, जिसे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा।


फांसी की सजा कैसे बदली उम्रकैद में?

  • सुप्रीम कोर्ट का रुख:
    2015 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को सही ठहराया था। हालांकि, दोषियों ने लंबे समय से जेल में बंद रहने और न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी का हवाला देते हुए फांसी की सजा को चुनौती दी।
  • बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला:
    हाईकोर्ट ने 2019 में इस बात को माना कि दया याचिका पर फैसले में देरी हुई है। इसे न्यायिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन मानते हुए मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
  • सुप्रीम कोर्ट की मुहर:
    अब सुप्रीम कोर्ट ने भी बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया। दोषियों की सजा को 35 साल की अनिवार्य जेल अवधि के साथ उम्रकैद में बदल दिया गया है।

 

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