नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि नागरिक की स्वतंत्रता सर्वोपरि है और उससे जुड़े मामले में तेजी से फैसला न करना व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले बहुमूल्य अधिकार से वंचित करेगा।

अनुच्छेद 21 को संविधान की आत्मा बताते हुए अदालत ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय से ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां जमानत या अग्रिम जमानत के आवेदनों पर तेजी से फैसला नहीं किया जा रहा है।

न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि कई मामलों में न्यायाधीश गुण-दोष के आधार पर फैसला नहीं कर रहे हैं, बल्कि मामलों को दबाने के लिए बहाने ढूंढ रहे हैं।

पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया कि वह आपराधिक अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल करने वाले सभी न्यायाधीशों से जल्द से जल्द जमानत से जुड़े मामले पर फैसला करने का अनुरोध करें।

पीठ ने कहा कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 संविधान की आत्मा है और नागरिकों की स्वतंत्रता सर्वोपरि है।

यह भी कहा गया कि किसी नागरिक की स्वतंत्रता से जुड़े मामले में तेजी से फैसला न करना और किसी न किसी आधार पर मामले को दबाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत उनके बहुमूल्य अधिकार से वंचित करेगा।

यह टिप्पणी एक महत्वपूर्ण फैसले में आई है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी को जमानत दे दी थी। आरोपी करीबी सात साल से जेल में था और उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका का निपटारा करते हुए उसे निचली अदालत के सामने ऐसी याचिका दायर करने की अनुमति दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय का यह आदेश अनुचित था और यह नागरिक की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन था।

Share This Article
Leave a Comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Exit mobile version