Electoral Bond : सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाते हुए कहा ‘बड़ी कंपनियों द्वारा राजनीतिक दलों को जो बड़ा चंदा मिलता है उसे गोपनीय रखना असंवैधानिक है।
इस चंदे को गोपनीय रखने के लिए इनकम टैक्स और कंपनी एक्ट में किए गए बदलाव भी असंवैधानिक हैं। इनकी जानकारी सार्वजनिक करना जरूरी है।’ SC ने तत्काल प्रभाव से इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने पर रोक लगा दी है।
जो बॉन्ड कैश नहीं हुए उन्हें लौटाना होगा: SC
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने SBI को आदेश देते हुए कहा है कि तत्काल प्रभाव से इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने बंद किए जाएं। इसके साथ ही जो बॉन्ड अब तक कैश नहीं हुए हैं उन्हें बैंक को वापस लौटाना होगा। SBI को 6 मार्च तक चुनाव आयोग को बॉन्ड की सारी जानकारी देनी होगी और EC 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर ये जानकारी अपलोड करेगा।’
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड?
बता दें साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत हुई। सरकार ने कहा कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी। इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट व संस्थाएं SBI से बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं।
राजनीतिक दल 15 दिन के भीतर इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं। कोई भी दानदाता एक करोड़ रुपए तक मूल्य के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीद कर पार्टी को दे सकता है। इस दौरान उसकी पहचान गुप्त रहेगी।
इलेक्टोरल बॉण्ड पर आपत्ति क्यों थी?
2018 में लागू हुई इलेक्टोरल बॉण्ड ऐसी व्यवस्था थी, जिसमें दान देने वाला शख्स या संगठन अपनी पहचान छिपाकर बैंक से 1 करोड़ तक का बॉण्ड खरीदकर अपने पसंदीदा राजनीतिक दल को चंदे के रूप में दे सकता है।
इस पर आपत्ति की वजह यह थी कि एक बड़े वर्ग को लगता था कि दान देने वाले की जानकारी आम लोगों के सामने न आने से इसे रिश्वत के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और सियासी दलों से अपने काम कराए जा सकते हैं।