बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले: क्या पाकिस्तान के इशारे पर हो रही हिंसा?
बांग्लादेश में हाल के दिनों में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों पर हमलों की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं, जिसने भारत और अन्य पड़ोसी देशों में चिंता बढ़ा दी है। यह घटनाएं न केवल सांप्रदायिक तनाव को उजागर करती हैं बल्कि बांग्लादेश में बदलते राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों की ओर भी इशारा करती हैं।
पूर्व भारतीय राजदूत वीना सीकरी के अनुसार, बांग्लादेश की स्थिति 1971 के मुक्ति संग्राम के समय जैसी अस्थिरता की ओर बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि कट्टरपंथी ताकतें अब खुले तौर पर सक्रिय हो रही हैं और पाकिस्तान के प्रभाव के चलते अल्पसंख्यकों के अधिकार खतरे में पड़ रहे हैं।
बांग्लादेश में हिंसा का बदलता स्वरूप
बांग्लादेश में हिंसा का बदलता स्वरूप
- हिंसा के उद्देश्य:
हिंदुओं के धार्मिक स्थलों, मंदिरों, संपत्तियों और महिलाओं को निशाना बनाकर उनकी आजीविका खत्म करने की कोशिश की जा रही है। - युवाओं की प्रतिक्रिया:
पलायन के बजाय, हिंदू और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय की युवा पीढ़ी विद्रोह का रास्ता अपना रही है। यह पहली बार है जब इन समुदायों ने संगठित होकर विरोध प्रदर्शन शुरू किए हैं।
पाकिस्तान और चीन की भूमिका
पाकिस्तान और चीन की भूमिका
1971 के मुक्ति संग्राम के समय से ही पाकिस्तान बांग्लादेश को अस्थिर करने में जुटा रहा है। जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों के माध्यम से सांस्कृतिक और धार्मिक टकराव पैदा करने की कोशिशें जारी हैं। चीन के भी अपने रणनीतिक हित हैं, जो म्यांमार और बांग्लादेश में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है।
भारत का रुख और संभावित कदम
भारत का रुख और संभावित कदम
भारत ने इस स्थिति को लेकर चिंता जताई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बांग्लादेश के नए नेतृत्व को बधाई संदेश के साथ अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात कही।
- राजनयिक उपाय:
- भारत के व्यापारिक और सांस्कृतिक संबंधों का उपयोग दबाव बनाने के लिए किया जा सकता है।
- अंतरराष्ट्रीय मंच पर इस मुद्दे को उठाना भी प्रभावी हो सकता है।
- अल्पसंख्यकों के लिए मदद:
बांग्लादेश में संविधान के धर्मनिरपेक्ष प्रावधान के तहत भारत सरकार की मदद इन समुदायों के लिए एक महत्वपूर्ण सहारा बन सकती है।