घर में पूजा होती है, लेकिन बेटियों की चिंता नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने योगेश्वर साव को लगाई फटकार
कटकमदाग गांव के निवासी योगेश्वर साव उर्फ डब्ल्यू साव को 2015 में हजारीबाग के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत ने आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपनी पत्नी पूनम देवी को दहेज के लिए प्रताड़ित करने का दोषी पाया था और उसे ढाई साल की सजा सुनाई थी।
योगेश्वर और पूनम की शादी 2003 में हुई थी और उनके दो बेटियाँ हैं। 2009 में, पूनम ने दहेज उत्पीड़न, जबरन गर्भाशय निकालवाने और पति द्वारा दूसरी शादी करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराई थी। इसके साथ ही उसने अपने और अपनी बेटियों के भरण-पोषण के लिए पारिवारिक न्यायालय में याचिका दायर की थी।
पारिवारिक न्यायालय ने योगेश्वर को अपनी पत्नी को 2,000 रुपये प्रति माह और प्रत्येक बेटी को वयस्क होने तक 1,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया था। इसके बाद, योगेश्वर ने अपनी सजा के खिलाफ झारखंड हाई कोर्ट में अपील की, जो 2024 में ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखी। इसके बाद, उसने दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मामलों में आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) के सदस्यों की नौकरी की सुरक्षा से जुड़ी याचिका को महत्वपूर्ण बताया। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार को नोटिस जारी किए जाने के बावजूद कोई पेश नहीं हुआ और कोई जवाब भी नहीं दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि यह एक महत्वपूर्ण मामला है और इसे गंभीरता से लिया जाएगा। अगले सप्ताह मामले की सुनवाई निर्धारित की गई है।
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