सुप्रीम कोर्ट में ओवैसी की याचिका: पूजा स्थल कानून के सख्त पालन की मांग, 2 जनवरी को सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट में ओवैसी की याचिका: पूजा स्थल कानून के सख्त पालन की मांग, 2 जनवरी को सुनवाई

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होंने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 को सख्ती से लागू करने की मांग की है। शीर्ष अदालत इस याचिका पर 2 जनवरी को सुनवाई करेगी।

कानून के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग

ओवैसी ने अपनी याचिका में केंद्र सरकार को पूजा स्थल कानून को प्रभावी ढंग से लागू करने का निर्देश देने की अपील की है। उनका तर्क है कि कई अदालतें हिंदू पक्ष की याचिकाओं पर मस्जिदों का सर्वेक्षण करने का आदेश दे रही हैं, जो सांप्रदायिक सौहार्द को प्रभावित कर सकता है।

हिंदू पक्ष की दलील और कानून की चुनौती

हिंदू पक्ष का दावा है कि इन स्थलों पर मंदिर थे, जो आक्रमणकारियों द्वारा ध्वस्त किए गए। कई याचिकाओं में 1991 के पूजा स्थल कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।

  • ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद, दिल्ली के कुतुब मीनार के पास कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद जैसे कई मामलों में मुकदमे दाखिल किए गए हैं।
  • समिति का आरोप है कि ये मुकदमे धार्मिक स्थलों पर दावे करने के उद्देश्य से दाखिल किए गए हैं।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सभी अदालतों को निर्देश दिया कि नए मुकदमों पर विचार न किया जाए।

  • अदालत ने हिंदू पक्ष की 18 याचिकाओं पर रोक लगाई, जिनमें मस्जिदों और दरगाहों के सर्वेक्षण की मांग की गई थी।
  • अदालत ने यह स्पष्ट किया कि पूजा स्थल अधिनियम के तहत किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता।

अश्विनी उपाध्याय की याचिका

वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी एक याचिका दाखिल की है, जिसमें उन्होंने 1991 के कानून को चुनौती देते हुए कहा है कि यह लोगों के न्यायिक अधिकारों को छीनता है।

क्या है पूजा स्थल अधिनियम, 1991?

यह कानून 15 अगस्त 1947 की स्थिति को आधार मानता है। इसके अनुसार, किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता।

  • यह कानून सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने और धार्मिक स्थलों पर विवाद को रोकने के लिए लागू किया गया था।

 

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