Jallianwala Bagh History: दुनिया के सबसे जघन्य हत्याकांडों में से एक जलियांवाला बाग की आज 105वीं बरसी है। आज ही के दिन 1919 में वहशी जनरल डायर ने अमृतसर में शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे लोगों पर दस मिनट तक गोलियां चलवाई थी। खुद को ज्यादा सभ्य कहने वाले अंग्रेजों ने क्रूरता की सारी हदें पार करते हुए बच्चों, बूढ़ों और महिलाओं किसी को नहीं बख्शा। जलियांवाला बाग की दीवारों पर आज भी खौफ और क्रूरता के वो निशान जिंदा हैं।
13 अप्रैल 1919 को, भारत के अमृतसर में जलियांवाला बाग में एक सभा के लिए हजारों लोग इकट्ठा हुए थे। इसी दौरान अंग्रेज सिपाहियों ने भारतीयों पर गोलियां बरसाने लगे। 10 मिनट के भीतर अंग्रेजों ने 1650 राउंड गोलियां बरसाई थीं, जिसमें एक हजार लोगों की मौत हुई थी। मरने वालों में बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं बड़ी संख्या में शामिल थे।
क्यों इकट्ठा हुए थे लोग: अमृतसर के स्वर्ण मंदिर के पास जलियांवाला बाग एक छोटा सा बगीचा है, जहां अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेक्ट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा हुई थी। उस दिन शहर में कर्फ्यू लगा था, लेकिन इसके बावजूद हजारों लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठा हो गए थे।
जलियांवाला बाग का गुनहगार जनरल डायर: जब लोग शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे, तभी वहां ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर पहुंच गया। जनरल डायर ने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ बगीचे को घेर लिया और फायरिंग का आदेश दिया। इसके परिणामस्वरूप सभा में चीख-पुकार मच गई,
हर कोई इधर-उधर भागने लगा। गोलियां लगने से लोग गिरते जा रहे थे, लेकिन जनरल डायर पर इसका कोई असर नहीं हुआ। पूरा बाग लाशों से पट गया था, जलियांवाला बाग श्मशान बन गया था। उस दिन बाग में मरने वालों का सही आंकड़ा आज तक पता नहीं चल पाया है, लेकिन माना जाता है कि उस नरसंहार में एक हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।