सुप्रीम कोर्ट ने कहा: व्हाट्सएप या ईमेल से भेजे नोटिस मान्य नहीं, जानिए इसके पीछे का कारण

Rajiv Kumar

सुप्रीम कोर्ट ने कहा: व्हाट्सएप या ईमेल से भेजे नोटिस मान्य नहीं, जानिए इसके पीछे का कारण

 

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में पुलिस को यह निर्देश दिया है कि वे सीआरपीसी की धारा 41ए और बीएनएसएस की धारा 35 के तहत नोटिस जारी करने के लिए व्हाट्सएप, ईमेल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का उपयोग न करें। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नोटिस केवल पारंपरिक और निर्धारित विधियों से ही जारी किए जाने चाहिए।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?

सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमएम सुंद्रेश और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने सीनियर एडवोकेट और न्याय मित्र सिद्धार्थ लूथरा के सुझावों को स्वीकार करते हुए यह आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि व्हाट्सएप या अन्य डिजिटल माध्यमों से भेजी गई नोटिस बीएनएसएस 2023 के तय मानकों को पूरा नहीं करती।

बेंच ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे अपनी पुलिस मशीनरी को आदेश दें कि वे केवल बीएनएसएस 2023 के अनुसार पारंपरिक तरीके से ही नोटिस जारी करें।

धारा 41ए और नोटिस जारी करने की प्रक्रिया

सीआरपीसी की धारा 41ए और बीएनएसएस की धारा 35 के तहत पुलिस अधिकारी किसी भी संज्ञेय अपराध की जांच के दौरान संदिग्ध को नोटिस जारी कर उसे जांच में पेश होने के लिए कहते हैं। यदि आरोपी पुलिस अधिकारी के सामने पेश होता है और सहयोग करता है, तो उसे गिरफ्तार नहीं किया जाता।

हालांकि, विपक्षी नेताओं और अन्य ने आरोप लगाया था कि पुलिस इस प्रक्रिया का पालन किए बिना, सीधे गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करते हुए यह सुनिश्चित किया कि धारा 41ए का सही ढंग से पालन किया जाए।

व्हाट्सएप नोटिस को क्यों ठहराया गया अवैध?

  1. मान्यता का अभाव: सुप्रीम कोर्ट ने माना कि व्हाट्सएप या ईमेल जैसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम बीएनएसएस 2023 के तहत तय मानकों को पूरा नहीं करते।
  2. संदेश की डिलीवरी का प्रमाण: इलेक्ट्रॉनिक नोटिस के मामले में यह सुनिश्चित करना मुश्किल है कि संदिग्ध को वास्तव में संदेश मिला है या नहीं।
  3. कानूनी प्रक्रिया का उल्लंघन: कोर्ट ने यह भी कहा कि पारंपरिक नोटिस जारी करने की प्रक्रिया कानूनन अधिक सुरक्षित और भरोसेमंद है।

गरीब कैदियों के लिए राहत

सुप्रीम कोर्ट ने जमानत राशि जमा न कर पाने के कारण जेल में बंद गरीब कैदियों के मुद्दे पर भी एक महत्वपूर्ण सुझाव दिया। न्याय मित्र सिद्धार्थ लूथरा ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के साथ यह सिफारिश की कि ऐसे कैदियों को उनके सत्यापित आधार कार्ड और व्यक्तिगत बांड जमा करने पर रिहा किया जाए।

पीठ ने इस सिफारिश को सैद्धांतिक रूप से मंजूरी देते हुए एमिकस को एनएएलएसए के साथ मिलकर इस प्रक्रिया को विकसित करने के लिए आगे चर्चा करने की अनुमति दी।

 

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