भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए नई पहचान: एक नई शुरुआत
बाहा होमस्ला, एक ट्रांसजेंडर महिला, उन लाखों लोगों में से एक हैं जिन्हें अपनी लैंगिक पहचान के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा है। समाज में व्याप्त गलत धारणाओं और कलंक के कारण उन्हें डर और अकेलापन महसूस करना पड़ा।
यूएनडीपी रिपोर्ट:
यूएनडीपी की मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 75% LGBTQI+ लोग भेदभाव का शिकार होते हैं, जिसके कारण उनमें मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। यह संख्या अल्पसंख्यक समुदायों से आने वाले लोगों के लिए और भी अधिक खराब होती है।
पहचान का संकट:
बाहा होमस्ला, जो बिहार के एक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती हैं, को भेदभाव के कारण घर छोड़ना पड़ा। कई ट्रांसजेंडर लोगों को अपनी पहचान छुपाने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिससे उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।
सरकारी योजनाओं से वंचित:
ट्रांसजेंडर लोगों के पास अक्सर जन्म के समय मिले नाम का ही पहचान पत्र होता है, जिससे उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में परेशानी होती है। शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा और आवास जैसी बुनियादी सुविधाओं तक उनकी पहुंच सीमित हो जाती है।
एचआईवी का खतरा:
ट्रांसजेंडर समुदाय एचआईवी संक्रमण के प्रति अधिक संवेदनशील होता है। एंटीरैट्रोवायरल थेरेपी (ART) जैसे उपचारों तक उनकी पहुंच पहचान पत्र की कमी के कारण बाधित हो सकती है।
समावेश की दिशा में प्रयास:
यूएनडीपी ने SCALE पहल शुरू की है, जिसका लक्ष्य भेदभावपूर्ण कानूनों और एचआईवी से जुड़े अपराधीकरण का मुकाबला करना और दुनिया भर में समुदायों तक सेवाओं की पहुंच को बेहतर बनाना है।
भारत में पहल:
भारत में, यूएनडीपी SCALE परियोजना के तहत ‘दोस्ताना सफर’ जैसी सामुदायिक संस्थाओं के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि ट्रांसजेंडर समुदायों को मान्य पहचान पत्र प्रदान किए जा सकें।
पहचान पत्र का महत्व:
ट्रांसजेंडर पहचान पत्र स्वास्थ्य सेवाओं, राशन कार्ड, बैंक खाते, ड्राइविंग लाइसेंस आदि तक पहुंच प्रदान करता है। यह सम्मान और समानता की भावना भी प्रदान करता है।
चुनौतियां:
पोर्टल उपलब्ध होने के बावजूद, अभी तक केवल 20,000 ट्रांसजेंडर प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। यूएनडीपी, भारत सरकार और जमीनी स्तर पर काम करने वाली संस्थाएं अधिक से अधिक लोगों को पोर्टल पर पंजीकरण करने और अपने पहचान पत्र प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।