एआई की मदद से मरीजों में तनाव की पहचान करना अब आसान होगा। नीदरलैंड के शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का उपयोग करके मरीजों में तनाव की पुष्टि की है।
नेचर मेंटल हेल्थ जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में विभिन्न देशों के 10 से 25 वर्ष की आयु के बच्चों और किशोरों को शामिल किया गया था।
कुल 3,500 बच्चों, किशोरों और युवाओं पर मशीन लर्निंग (एमएल) तकनीक का उपयोग करके तनाव की पहचान की गई। यह एआई का एक प्रकार है जो मशीनों को स्पष्ट प्रोग्रामिंग के बिना डेटा विश्लेषण से सीखने और सुधारने में मदद करता है।
शोधकर्ताओं ने देखा कि एआई एल्गोरिदम बहुत कम समय में मरीजों में तनाव की पुष्टि कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि ये प्रारंभिक परिणाम आने वाले समय में काफी बेहतर हो सकते हैं।
हालांकि, भौगोलिक स्थिति के आधार पर इसके काम में भिन्नता भी देखी जा सकती है। नीदरलैंड के लीडेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मोजी अघाजानी ने कहा कि तनाव संबंधी विकार आमतौर पर किशोरावस्था और प्रारंभिक वयस्कता में सबसे पहले दिखाई देते हैं।
ये विकार दुनिया भर में लाखों युवाओं के लिए बड़ी भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक समस्याएं पैदा कर रहे हैं। भारत का युवा वर्ग भी इससे अछूता नहीं है।
यह अध्ययन तनाव के शीघ्र और सटीक निदान के लिए एआई की क्षमता को दर्शाता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि तनाव का इलाज जल्दी शुरू करने से इसके गंभीर परिणामों को रोका जा सकता है।
अध्ययन के अनुसार, एआई का उपयोग करके तनाव का पता लगाने के लिए कई तरीके हैं। इनमें शामिल हैं:
- फेशियल रिकग्निशन: एआई का उपयोग करके चेहरे के भावों का विश्लेषण करके तनाव का पता लगाया जा सकता है।
- वॉयस रिकग्निशन: एआई का उपयोग करके आवाज के स्वर और पिच का विश्लेषण करके तनाव का पता लगाया जा सकता है।
- भाषा विश्लेषण: एआई का उपयोग करके भाषा के पैटर्न का विश्लेषण करके तनाव का पता लगाया जा सकता है।