हिंदू महिलाओं का संपत्ति पर अधिकार: सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ सुलझाएगी दशकों पुराना विवाद
हिंदू महिलाओं को संपत्ति पर अधिकार देने वाले हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 के तहत जटिल कानूनी मुद्दे को सुलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने अब बड़ी पीठ का गठन करने का निर्णय लिया है। यह मामला पिछले छह दशकों से कानून और समाज के लिए एक महत्वपूर्ण चर्चा का विषय रहा है।
क्या है विवाद?
मुख्य सवाल यह है कि क्या हिंदू पत्नी को अपने पति द्वारा दी गई संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार होगा, भले ही वसीयत में उसके अधिकारों को सीमित करने वाली शर्तें रखी गई हों?
यह विवाद 1965 में कंवर भान नामक व्यक्ति द्वारा बनाई गई वसीयत से जुड़ा है। इसमें उन्होंने अपनी पत्नी को जीवनकाल के लिए जमीन पर कब्जे और आनंद का अधिकार दिया था, लेकिन यह शर्त रखी थी कि उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति उनके उत्तराधिकारियों को वापस लौटाई जाएगी।
बाद में, पत्नी ने उस जमीन को बेच दिया और खुद को उसका पूर्ण मालिक बताया। इस पर बेटे और पोते ने अदालत में चुनौती दी। निचली अदालत और अपीलीय अदालत ने पत्नी के पक्ष में निर्णय दिया, लेकिन मामला उच्च न्यायालय और फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले क्यों हैं महत्वपूर्ण?
इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के 1977 में तुलसाम्मा बनाम शेषा रेड्डी मामले में दिए गए फैसले में धारा 14(1) की व्यापक व्याख्या करते हुए महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार दिया गया था। इसके विपरीत, 1972 के कर्मी बनाम अमरू मामले में वसीयत में लगाए गए प्रतिबंधों के आधार पर महिलाओं के अधिकार सीमित किए गए थे।
इन परस्पर विरोधी व्याख्याओं के चलते देशभर में अदालतों ने अलग-अलग फैसले दिए, जिससे कानूनी स्थिति अस्पष्ट हो गई।
धारा 14(1) बनाम धारा 14(2): महिलाओं के अधिकारों पर असर
- धारा 14(1): हिंदू महिलाओं को संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व का अधिकार देती है, चाहे वह संपत्ति वसीयत, उपहार या अन्य किसी माध्यम से क्यों न मिली हो।
- धारा 14(2): इसमें कुछ अपवाद दिए गए हैं, जिसमें वसीयत या उपहार में दी गई संपत्ति को स्वामित्व में बदलने पर शर्तें लगाई जा सकती हैं।
यह विभाजन लंबे समय से महिलाओं के अधिकारों और संपत्ति पर उनके स्वामित्व को लेकर कानूनी उलझन का कारण बना हुआ है।
बड़ी पीठ का गठन और अपेक्षित निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने अब बड़ी पीठ के गठन की घोषणा की है, जो इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय देगी। इस निर्णय का प्रभाव न केवल कंवर भान की वसीयत से जुड़े मामले पर पड़ेगा, बल्कि यह लाखों हिंदू महिलाओं के संपत्ति अधिकारों को स्पष्ट करेगा।