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Toggleमहरौली के ऐतिहासिक स्मारकों को तोड़ने की योजना पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने जानकारी दी है कि दिल्ली के महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क में स्थित ‘आशिक अल्लाह दरगाह’ और ‘फरीद चिल्लागाह’ 13वीं सदी के दो ऐतिहासिक स्मारक हैं। इनकी ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता को नजरअंदाज करते हुए इन्हें अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के तहत तोड़ने की योजना बनाई जा रही है।
अतिक्रमण के आरोप और कार्रवाई
एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) इन दोनों संरचनाओं को तोड़ने का प्रयास कर रहा है। ये स्मारक महरौली के संजय वन क्षेत्र में ग्रीन बेल्ट पर अतिक्रमण करके बनाए गए हैं। हालांकि, एएसआई ने इन्हें ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का बताते हुए संरक्षित करने की अपील की है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका
इस मामले में जमीर अहमद जुमलाना की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है, जिसमें डीडीए पर आरोप लगाया गया है कि वह बिना उचित आकलन के इन ऐतिहासिक इमारतों को तोड़ने की योजना बना रहा है। याचिकाकर्ता ने इन्हें संरक्षित करने और तोड़ने से रोकने की मांग की है।
1317 ईस्वी में हुआ था निर्माण
एएसआई की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों संरचनाओं पर मौजूद शिलालेख से पता चलता है कि इनका निर्माण सन 1317 ईस्वी में हुआ था। ये स्मारक महाराजा पृथ्वीराज चौहान के किले के पास स्थित हैं और प्राचीन स्मारक, पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्र में आते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का आदेश
29 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने एएसआई को इन स्मारकों की ऐतिहासिकता और धार्मिक महत्व पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। इसके बाद एएसआई ने स्पष्ट किया कि इन संरचनाओं का ऐतिहासिक महत्व है और इन्हें तोड़ने से पहले व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है।