न्यूज की न्यूज : सरकार ने हाल ही में खेल से जुड़े विभिन्न अवार्ड्स की घोषणा की है। जिसके बाद साक्षी मलिक समेत कई खिलाडियों ने अवार्ड नहीं मिलने पर सरकार से नाराजगी जताई है। लेकिन पहलवान ऐसा भी है जो अवार्ड न मिलने से नाराज है लेकिन वह बोल और सुन नहीं सकता। ऐसे में हम उनकी आवाज उठाने का प्रयास कर रहे हैं। अब सवाल आपसे है कि क्या आप उसकी आवाज बनेंगे।
हम बात आकर रहे हैं हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले गूंगा पहलवान के नाम से फेमस वीरेंद्र पहलवान की। वे सुन-बोल नहीं सकते। इस शारीरिक कमी के बावजूद वे अखाड़े में अच्छे-अच्छों को थका देते हैं। फेमस रेसलर सुशील कुमार को कड़ी टक्कर दे चुके हैं। लेकिन खेल रत्न न मिलने से नाराज हैं।
उन्होंने सरकार से नाराजगी जाहिर करते हुए ट्वीट किया है कि – माननीय प्रधानमंत्री जी और माननीय खेल मंत्री जी। मुझे खेल रत्न नही मिला इस बात का दुःख नही है। दुःख इस बात का है कि पैरा एथलीट जिसकी उपलब्धियां मुझ से बहुत कम थी, उनको खेल रत्न दिया गया। मैं सुन-बोल नही सकता… शायद इसलिए मेरे साथ वर्षों से यह हो रहा है। देखिए उनका ट्वीट।
गूंगा पहलवान ने न केवल अपनी नाराजगी ट्वीट कर जाहिर की बल्कि खिलाड़ी पूनम मलिक का भी समर्थन किया। क्योंकि पूनम मलिक भी अवार्ड न मिलने से नाराज हैं। उनके ट्वीट का समर्थन करते हुए वीरेंद्र पहलवान ने लिखा है कि- देश की बेटी निराश मत हों। हमारी आवाज़ ज़रूर माननीय प्रधानमंत्री जी और माननीय खेल मंत्री जी तक जाएगी। अब न्याय होगा क्योंकि हमारे देश के खेल मंत्री हम खिलाड़ियों के दर्द को समझते है। बस बात तब तक की है, जब तक हमारी बात उन तक न जाए।
आइए आपको बताएं कैसे हुई गूंगा पहलवान की कुश्ती की शुरुआत – – पिता की देखा-देखी वीरेंद्र ने कुश्ती शुरू की थी। – बता दें कि सीआरपीएफ में काम करने वाले उनके पिता को कुश्ती पसंद थी। – उन्हें देख 5-6 साल की उम्र से ही वीरेंद्र ने भी अखाड़े में वर्जिश और पहलवानी शुरू कर दी। – दिव्यांग होने पर लोग उड़ाते थे मजाक। – शुरुआत में अखाड़े में दूसरे पहलवान उनकी शारीरिक विकलांगता का मजाक उड़ाते थे। – वे जब वर्जिश करते तो लोग ताना कसते- ‘देख गूंगा भी पहलवान बनेगा।’ – लेकिन वे अखाड़े में कोच के होठों की फड़कन और पहलवानों को देखकर दांव-पेंच के पैंतरे सीखने लगे। जीत चुके हैं गोल्ड – 2002 में नेशनल चैम्पियनशिप में टॉप-3 में थे, पर इंटरनेशनल चैम्पियनशिप के लिए उनका सिलेक्शन नहीं हुआ। वे दुखी हुए पर लगे रहे। – डीफलिंपिक्स यानी बधिरों के ओलिंपिक में 2005 (मेलबर्न) और 2013 (बुल्गारिया) में आखिरकार इन्होंने गोल्ड मेडल जीता। रेसलर सुशील कुमार को भी दे चुके हैं कड़ी टक्कर – फेमस रेसलर सुशील कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि वीरेंद्र से पांच बार भिड़ा, पर हरा नहीं पाया सभी मैच ड्रॉ ही रहे। – बता दें कि वीरेंद्र के कारण ही भारत के लिए डीफगेम्स ने दरवाज़े खोल दिए। वीरेंद्र पर एक “गूंगा पहलवान” नाम से छोटी फिल्म भी बनाई गई है।
गूंगा पहलवान उर्फ वीरेंद्र ने बिना बोले अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है और हम उनकी आवाज उठाने का प्रयास कर रहे हैं, जरूरत इस बात की है कि इस संघर्ष में आप भी उनकी आवाज बनें।
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