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Toggle‘वृक्ष माता’ तुलसी गौड़ा का निधन: पर्यावरण संरक्षण की प्रतीक को देश ने दी अंतिम विदाई
पद्मश्री से सम्मानित और ‘वृक्ष माता’ के नाम से प्रसिद्ध तुलसी गौड़ा का सोमवार को निधन हो गया। 86 वर्ष की आयु में उन्होंने उत्तर कन्नड़ जिले के अंकोल तालुक स्थित अपने गृह गांव हंनाली में अंतिम सांस ली। वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों के कारण उनका निधन हुआ। तुलसी गौड़ा के जाने से पर्यावरण प्रेमियों और उनके प्रशंसकों में शोक की लहर है।
प्रधानमंत्री मोदी ने जताया शोक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तुलसी गौड़ा के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि तुलसी गौड़ा पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और योगदान के लिए हमेशा याद की जाएंगी। राष्ट्रपति और अन्य प्रमुख हस्तियों ने भी उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
नंगे पैर पद्मश्री सम्मान लेने वाली आदिवासी महिला
तुलसी गौड़ा ने अपनी सादगी और पर्यावरण के प्रति निस्वार्थ सेवा से देशभर में ख्याति पाई। उन्होंने राष्ट्रपति भवन में नंगे पैर और पारंपरिक आदिवासी परिधान में पद्मश्री सम्मान प्राप्त किया था। हलक्की आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली तुलसी गौड़ा का जीवन पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित रहा।
बचपन से जुड़ा पर्यावरण से विशेष लगाव
तुलसी गौड़ा ने बहुत छोटी उम्र में ही वन विभाग की पौध नर्सरी में काम करना शुरू कर दिया था। उनका बचपन नर्सरी और जंगलों के बीच गुजरा। उन्हें पौधे लगाना और उनकी देखभाल करना बेहद प्रिय था। उनके प्रयासों से अंकोला और आसपास के क्षेत्रों में हजारों पेड़ लगाए गए, जो अब विशाल वृक्ष बन चुके हैं।
एक लाख से अधिक पौधों का रोपण
तुलसी गौड़ा ने अपने जीवनकाल में एक लाख से अधिक पौधे लगाए। उन्होंने केवल पौधे लगाकर ही नहीं, बल्कि उनकी देखभाल कर उन्हें वृक्ष बनने तक पोषित किया। वह पौधों को अपने बच्चों की तरह मानती थीं और उनकी जरूरतों को समझती थीं। पौधों की विभिन्न प्रजातियों और उनके औषधीय गुणों की जानकारी ने उन्हें ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ का खिताब दिलाया।
पद्मश्री और अन्य सम्मान
पर्यावरण संरक्षण में अतुलनीय योगदान के लिए तुलसी गौड़ा को पद्मश्री के अलावा इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से नवाजा गया। उन्होंने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के पर्यावरण के प्रति अपने अनुभव और ज्ञान का उपयोग किया और वन विभाग में काम करते हुए समाज को प्रेरित किया।
आदिवासी संस्कृति और पर्यावरण संरक्षण
तुलसी गौड़ा का पर्यावरण प्रेम उनकी आदिवासी संस्कृति का हिस्सा था। आदिवासी समुदाय हमेशा से प्रकृति के साथ संतुलन बनाकर जीवन जीते आए हैं। तुलसी ने अपनी संस्कृति की परंपरा को आगे बढ़ाया और प्रकृति संरक्षण में अपना योगदान दिया।