पूजा स्थल अधिनियम पर विवाद: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

पूजा स्थल अधिनियम पर विवाद: सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी

 

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को पूजा स्थल अधिनियम-1991 की वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिका पर कड़ी नाराजगी जताई। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने स्पष्ट संकेत दिया कि लंबित याचिकाओं पर आज सुनवाई नहीं होगी, क्योंकि मामला पहले तीन न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष रखा जा चुका है। अदालत ने इस मामले की सुनवाई अप्रैल के पहले सप्ताह तक स्थगित कर दी।

 

याचिकाएं दाखिल करने की भी होती है सीमा

 

वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह द्वारा एक नई याचिका का उल्लेख किए जाने पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि इस पर विचार करना मुश्किल होगा। सीजेआई ने कहा कि याचिकाएं दायर करने की भी एक सीमा होती है और अब तक कई अंतरिम आवेदन (आईए) दाखिल किए जा चुके हैं। उन्होंने संकेत दिया कि अदालत इस पर तत्काल सुनवाई नहीं करेगी।

 

पिछले साल 12 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू पक्षों की 18 याचिकाओं पर कार्यवाही रोक दी थी। इन याचिकाओं में ज्ञानवापी, मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद और संभल की शाही जामा मस्जिद सहित 10 धार्मिक स्थलों के सर्वेक्षण की मांग की गई थी। इसके बाद अदालत ने सभी याचिकाओं को 17 फरवरी को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

 

ओवैसी, इकरा हसन और कांग्रेस की नई याचिकाएं

 

12 दिसंबर के बाद असदुद्दीन ओवैसी, सपा सांसद इकरा हसन और कांग्रेस ने भी नई याचिकाएं दाखिल कीं। इन याचिकाओं में पूरे देश में पूजा स्थल अधिनियम-1991 को प्रभावी रूप से लागू करने की मांग की गई थी। इकरा हसन ने 14 फरवरी को एक याचिका में मस्जिदों और दरगाहों को निशाना बनाकर की जा रही कानूनी कार्यवाहियों पर रोक लगाने की अपील की। उनका तर्क था कि इससे सांप्रदायिक सौहार्द और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों को खतरा हो सकता है।

 

हिंदू संगठनों की भी याचिकाएं

 

अखिल भारतीय संत समिति ने भी इस कानून के खिलाफ याचिका दायर की है। वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट छह याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, जिनमें से एक वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय की है। उपाध्याय ने पूजा स्थल अधिनियम-1991 की धारा 2, 3 और 4 को चुनौती दी है और इसे निरस्त करने की मांग की है।

 

क्या है पूजा स्थल अधिनियम-1991?

 

यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 को देश में मौजूद धार्मिक स्थलों की स्थिति को बरकरार रखने के लिए लागू किया गया था। इसके तहत किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता। हालांकि, राम जन्मभूमि मामले को इस कानून के दायरेसे बाहर रखा गया था।

 

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